हमारे देश में हम सभी हिंदू धर्म के लोगोंने बेहद उत्साह के साथ दिवाली मनाई है और देव दीपावली मनाने के लिए पूरी तरह से तैयार भी हैं। हाँ! यह प्रसिद्ध उत्सव हर साल शुभ शहर वाराणसी के गंगा नदी के घाट पे मनाया जाता है। देव दीपावली के रूप में जाना जाने वाला यह उत्सव राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की विजय का उत्सव है। इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा या त्रिपुरोत्सव के रूप में भी जाना जाता है और यह कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर होता है। यह प्रबोधिनी एकादशी से शुरू होने वाले गंगा महोत्सव के अंतिम दिन के साथ भी आता है। इसलिए यह त्योहार को देव दीपावली के रूप में जाना जाता है।
Dev Deepawali 2023
प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा की तिथि पर देव दीपावली मनाई जाती है। हमारे हिंदू धर्म में दिवाली की तरह देव दीपावली का भी बहुत ज्यादा महत्व है। इस त्योहार को भी दीपों का त्योहार कहा जाता है। देव दीपावली का यह पावन पर्व दिवाली के ठीक 15 दिन के बाद मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से काशी में गंगा नदी के घाट पर मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरते हैं और देव दीपावली मनाते हैं। देवों की इस दिवाली पर वाराणसी के घाटों को मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है। काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन काशी नगरी में एक अलग ही हर्षो–उल्लास देखने को मिलता है। हमारी चारों ओर खूब सारी रोशनी साज-सज्जा की जाती है। हिंदू धर्म के शास्त्रों में इस दिन दीपदान का भी बहुत ज्यादा महत्व बताया गया है। ऐसे में चलिए हम जानते हैं इस साल देव दीपावली की तिथि, मुहूर्त, विधि और इस दिन दीपदान का महत्व के बारे में कुछ जानकारी हासिल करते है।
देव दीपावली 2023 कब है?
देव दीपावली का पर्व हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन तिथि को मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल 26 नवंबर को कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि है, इसलिए देव दीपावली का पर्व इस साल 26 नवंबर को मनाया जाएगा।
देव दीपावली क्या है?
देव दीपावली एक पवित्र त्योहार है। जो की ये देवो का पवित्र त्योहार है। वह वाराणसी जैसे पवित्र शहर में बहुत भव्यता और उत्साह के साथ लोगों के द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार देव दीपावली के नाम से मशहूर इस त्यौहार को ” देवताओं की दीपावली” के नाम से जाना जाता है।
भगवान शिव के भक्त, हर साल वाराणसी शहर में गंगा नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाकर और पूजा करके देव दीपावली का उत्सव मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवगण अपने उत्सव को मनाने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर वाराणसी शहर के गंगा नदी के घाटों पर आते हैं।
देव दीपावली पर शुभ मुहूर्त
देव दीपावली का शुभ मुहूर्त 26 नवंबर को देव दीपावली वाले दिन शाम के समय यानी प्रदोष काल में 5 बजकर 8 मिनट से 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाई जाएगी। इस देव दीपावली के दिन शाम के समय 11, 21, 51, 108 आटे के दीये बनाकर उनमें तेल और बाती डालें और किसी नदी के किनारे प्रज्वलित करके अर्पित कर सकते है।
देव दिवाली 2023 तिथि और तिथि समय
देव दीपावली तिथि | 27 नवंबर 2023, सोमवार |
पूर्णिमा तिथि आरंभ | 26 नवंबर 2023 को 03:53 बजे |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | 27 नवंबर 2023 को 02:45 बजे |
देव दीपावली कब मनाई जाती है?
देव दीपावली की तिथि – हर साल, देव दीपावली का त्योहार हिंदू धर्म में कार्तिक महीने की पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है। आम तौर पर, यह त्योहार दिवाली के 15 दिन के बाद होता है, और इस वर्ष रविवार, 26 नवंबर, 2023 को शाम 5:08 बजे से शाम 07:47 बजे तक देव दीपावली पर “देवताओं का त्योहार” मनाएगा जायेगा। इस देव दीपावली के दिन वाराणसी शहर गंगा के घाटों पर लाखों मिट्टी के दीयों से रोशन किया जाता है। वहा पे आरती की जाती है और लोग एक दूसरे को देव दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं।
देव दीपावली की कहानी
प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन भगवान के धरती पर अवतरित हुए थे। उनके अलावा भी देव दीपावली मनाने के पीछे कई कहानियां हैं। इस त्यौहार को त्रिपोरुत्सव या त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि, यह त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत का जश्न मनाया जाता है।
कुछ लोगो का यह भी मानना हैं कि यह युद्ध के देवता और भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिक की जन्मजयंती है। यह वह दिन भी माना जाता है जब भगवान विष्णु अपने पहले अवतार ‘मत्स्य’ में अवतरित हुए थे। देव दीपावली मनाने के पीछे ऐसी कई दिलचस्प कहानियां है। वाराणसी शहर में देव दीपावली का त्योहार मनाने के कुछ खास तरीको से मनाया जाता हैं। लोग गंगा नदी के घाट पर सुबह स्नान करते हैं। स्नान करके वहा पे मिट्टी के दीप प्रज्ज्वलित करके आरती करते हैं। पूजा करते हैं। गंगा नदी का पानी पवित्र है। माना जाता है कि देवताए देव दीपावली के दिन गंगा नदी के घाट पर स्नान करने को आते हैं।
देव दिवाली का इतिहास
देव दीपावली का त्योहार दिवाली के 15 दिन बाद का होता है। यह देवताओं की दीपावली है और इसे ”कार्तिक पूर्णिमा”भी कहा जाता है। यह त्योहार की शांति का अनुभव करने के लिए, किसी को वाराणसी के घाटों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। वाराणसी के लोग हजारों मिट्टी के दीपक से सीढ़ियों को रोशन करते हैं, उनकी रोशनी नदी के झिलमिलाते पानी में प्रतिबिंबित होती नजर आती है। वाराणसी गंगा घाट पर चारों ओर भजन-कीर्तन, शंखनाद और लयबद्ध ढोल बजता रहता है। दैवी देवताओं की शक्तियों की उपस्थिति को महसूस न करना कठिन है। हजारों श्रद्धालुओंने गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाई होती हैं। लोगों का मानना है कि पानी में स्नान करने से आपके पाप धुल जाते हैं और आप देवताओं के करीब आ जाते हैं। आपको दैवी शक्ति की अनुभूति होती हैं।
देव दीपावली भगवान शिव का सम्मान करती है, जिन्होंने तीन शक्तिशाली राक्षसों विद्युन्माली, तारकाक्ष और वीर्यवान को हराया और मार डाला, जिन्हें एक साथ त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता है। इस तरह की उपलब्धि के लिए एक दिव्य उत्सव मनाने की आवश्यकता होती है, यही कारण है कि देवता स्वयं हर साल शिव की जीत का जश्न इस देव दीपावली के दिन मनाते हैं। यह उचित है कि यह उत्सव वाराणसी में हो, जिसे लंबे समय से भगवान शिव का शहर माना जाता है। वाराणसी में गंगा नदी के घाट यह उत्सव मनाया जाता है।
देव दीपावली क्यों मनाई जाती है?
दिवाली के 15 दिन बाद देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। यह दिवाली उत्सव के अंत का प्रतीक है और तुलसी विवाह अनुष्ठान का समापन होता है। लोगो को उत्सव की खुशी का अनुभव करने के लिए वाराणसी शहर के गंगा नदी के घाटों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
देव दीपावली भगवान शिव के सम्मान में मनाई जाती है। भगवान शिवने तीन राक्षसों विद्युन्माली, तारकाक्ष और वीर्यवान पर विजय प्राप्त किया था, जिन्हें एक साथ त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता है। उन तीनो राक्षसोंने कठोर तपस्या करके सफलतापूर्वक भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद प्राप्त किया था, ताकि वे तब तक नहीं मरेंगे, जब तक कि उन्हें एक ही तीर से मार दिया न जाए। भगवान से वरदान पाकर वे तीनों राक्षस पृथ्वी को नष्ट करने लगे थे। परिणामस्वरूप, भगवान शिव ने त्रिपुरारी का रूप धारण किया और उन तीनों राक्षसों को एक ही तीर से मार डाला। जिससे खुशी, सद्भाव और आनंद बहाल हुआ है।
इस कहानी के अलावा भी, कुछ लोग इस देव दीपावली के दिन को युद्ध के देवता और भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिक की जन्मजयंती के रूप में मनाते हैं। यह वह दिन भी माना जाता है जब भगवान विष्णु ने अपने पहले अवतार में पृथ्वी पर प्रवेश किया था। “मत्स्य”।
धार्मिक महत्व के अलावा भी, देव दीपावली का पर्व वाराणसी का देशभक्तिपूर्ण महत्व भी है। इस दिन गंगा नदी के घाटों पर भारतीय सशस्त्र बलों के उन शहीदों को याद किया जाता है, जो भारत के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे।
देव दीपावली कैसे मनाई जाती है?
यह वाराणसी की पवित्र भूमि और गुजरात के कुछ हिस्सों के लिए अत्यधिक मूल्यवान और महत्वपूर्ण है। यदि आप अत्यधिक पवित्र और सम्मोहक वातावरण देखना चाहते हैं, तो वाराणसी जाएँ। दिन की शुरुआत गंगा नदी के घाट पर “कार्तिक स्नान” से होती है, जहां हरेक भक्त सुबह-सुबह गंगा नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। इस दिन लोग अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं, झिलमिल बत्तियों की रोशनी और दियो ,मोमबत्तियाँ जलाते हैं। वे अखंड रामायण का पाठ भी करते हैं, जिसके बाद भगवान को भोग (प्रसाद) चढ़ाकर सबको प्रसाद का वितरण किया जाता है।
वाराणसी में देव दीपावली का पूजन उसके बाद ऋषिकेश, हरिद्वार और कई अन्य शहरों में गंगा सहित प्रत्येक घाट को मिट्टी के दीयों और फूलों से सजाया जाता है। इसके बाद 24 ब्राह्मणों द्वारा 24 पवित्र मंत्रों और वैदिक मंत्रों और गंगा आरती का आनंद लिया जाता है। यदि आप वाराणसी जा रहे हैं और देव दीपावली पर वाराणसी में गंगा आरती नहीं देखी, तो आपकी यात्रा अधूरी होगी। वहा पे ब्राह्मणों का एक समूह अपने हाथ में बड़ी-बड़ी आरती लेकर एकजुट गति से आगे बढ़ता है और आरती करता है,जो हमारी आंखों और हमारे कानों के लिए एक बड़ा ही सुखद अनुभव है। वहा पे जा के देव दीपावली मनाने का अद्भुत आनंद मिलता है।
देव दीपावली का महत्व
हिंदू धर्म में मान्यता है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन ही शिवजीने त्रिपुरासुर नाम के तीनो राक्षसो का वध किया था। त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर खुशी, उत्सव मनाया था। कहा जाता है कि इस दिन शिवजी के साथ सभी देवी-देवता धरती पर आते हैं और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं, इसलिए काशी में हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर लोग देव दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।
वाराणसी एक आदर्श धार्मिक और शुभ स्थान है। जहांपे विभिन्न देशों से लोग पवित्र वातावरण का अनुभव करने और यहां कुछ दिन बिताने के लिए इस प्राचीन शहर में आते हैं। यहां, वे गंगा नदी के तट या घाटों पर आध्यात्मिक प्रथाओं में आनंद की सांस लेते हुए आनंद महसूस करते हैं। वे शहर के मंदिरों के दर्शन करते हैं। जब देव दीपावली का उत्सव आता है, तो वाराणसी शहर देवताओं के भव्य निवास के रूप में दिखाई देता है। यह शहर बस ” रोशनी का शहर ” प्रदर्शित करता है। इस दिन वाराणसी में होना वास्तव में एक बार का अद्भुत अनुभव है।
वाराणसी में देव दिवाली का महत्व
वाराणसी कई प्रवास पर्यटकों और धार्मिक अनुयायियों के लिए एक आदर्श धार्मिक स्थल है। विभिन्न देशों से लोग इस प्राचीन शहर में आते हैं और यहां पे कुछ दिन बिताते हैं। वे गंगा नदी के तटों या घाटों पर ध्यान अभ्यास के साथ आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने के लिए इस पवित्र स्थान पर आते हैं। वे शहर के मंदिरों में कई बार जाते हैं। और जब अंततः देव दीपावली का त्योहार आता है, तो वाराणसी देवताओं के निवास के रूप में भव्य रूप से प्रकट होती है! देव दीपावली वाराणसी के लिए “रोशनी का शहर” विशेषण प्रदर्शित करती है। देव दीपावली के दिन वाराणसी में होना वास्तव में एक अद्भुत अनुभव है।
देव दीपावली की पूजा विधि
देव दीपावली के दिन सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करें। यदि किसी कारण नदी स्नान संभव न हो तो आप नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं। इसके बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें। इस दिन भगवान गणेश, शिवजी, और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। देव दीपावली की पूजा विधि में हल्दी, कुमकुम, चंदन, अक्षत, सुपारी, मौली, जनेऊ, दूर्वा, पुष्प, फल और नैवेद्य अर्पित करें और फिर धूप दीप जलाकर आरती करें। इस दिन सुबह के साथ ही प्रदोषकाल में भी पूजा करनी चाहिए।
औपचारिक आयोजनों की योजना काफी विस्तृत रूप से बनाई जाती है और हर साल ये देव दीपावली का त्योहार अत्यधिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन अपनाए जाने वाले अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं:
- लोग सबसे पहले आपको भगवान गणेशजी की पूजा करके और फूल चढ़ाने चाहिए। फिर, 21 ब्राह्मण और 41 युवा लड़कियां मिट्टी के दीये चढ़ाते हैं, जिसे ‘दीपदान’ भी कहा जाता है, और साथ में वैदिक मंत्रों का जाप करते हैं।
- कार्तिक स्नान के नाम से जाना जाने वाला एक अनुष्ठान, जिसमें गंगा नदी में डुबकी लगाना शामिल है। ऐसा माना जाता है कि यह भक्त के सभी पापों को दूर कर देता है। मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भक्त अखंड रामायण के पवित्र ग्रंथ का पाठ का आयोजन भी करते हैं। सभी को भोजन कराया जाता है, जिसे भोज कहते हैं।
देव दीपावली का त्योहार दिवाली के बाद आने वाला एक धार्मिक अवसर होने के अलावा, यह दिन घाटों पर शहीदों की याद का भी गवाह है। इसके लिए, गंगा नदी के घाट पर प्रार्थना की जाती है और पूजा, आरती की जाती है, जो लोगों को अपने आप में देखने लायक होता है। यही बात पास के राजेंद्र प्रसाद घाट पर भी तीनों सशस्त्र बलों के सदस्यों और स्थानीय पुलिस अधिकारियों द्वारा की जाती है। कार्यक्रम के दौरान लोग देशभक्ति के गीत गाते हैं।
देव दीपावली पर दीपदान का महत्व
धार्मिक शास्त्रों में देव दीपावली के त्योहार के दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने का महत्व बताया गया है। मान्यता अनुसार माना जाता है कि इस दिन लोग गंगा स्नान के बाद दीपदान करने से पूरे वर्ष शुभ फल मिलता है।
भव्य गंगा आरती
देव दीपावली के दिन कहने की जरूरत नहीं है कि वाराणसी गंगा आरती करने में अव्वल है और देव दीपावली पर इस भव्य आयोजन का नजारा आप स्वयं देख सकते हैं! इसके अलावा, दशाश्वमेध घाट भारी भीड़ से भरा हुआ है। देव दीपावली के त्योहार पर की जाने वाली गंगा आरती साल की सबसे लंबी आरती होती है।
गंगा नदी के सभी घाटों पर अनगिनत मिट्टी के दीये निश्चित रूप से आपको खुशी से जगमगा देंगे। वाराणसी शहर के गंगा घाट की इस खूबसूरत शाम का अति सुंदर दृश्य आपको अपनी शानदार कल्पनाओं में वापस ले जाता है। लोग शाम को अस्सी घाट भी जाते हैं। रीवा घाट, केदार घाट, मान मंदिर घाट और पंच गंगा घाट जैसे अन्य स्थान भी देव दीपावली की पूर्व संध्या मनाने के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं।
आपको देव दीपावली की बहुत खूब शुभकामनाएं, और आने वाला समय आपके लिए खुशियां और प्रचुरता लेकर आए!